उषा बारले पंडवानी तथा पंथी लोक गायिका full story

उषा बारले पंडवानी Usha Barle जी आज किसी के परिचय का मोहताज नहीं है।  ये नाम 25 जनवरी 2023 के दिन तब सुर्खियों में आया जब पद्म पुरुष्कार के लिए उषा बारले Usha Barle जी चयनित हुई। इन्होने अपने जीवन में बहुत उतार चढाव देखे।कभी इन्हे अपने घर परिवार चलाने के लिए फल संतरे भी बेचने पड़े थे।

उषा बारले पंडवानी
उषा बारले पंडवानी

usha barle biography

उषा बारले पंडवानी Usha Barle जी का जीवन परिचय ( History )

नाम –     उषा बारले Usha Barle

जन्म स्थान -2 मई 1968 भिलाई

पति का नाम –   अमरदास बारले जी।

पिता का नाम – स्व.खाम सिंह जांगड़े।

माता का नाम – धनमत बाई जांगड़े।

बड़ी माता का नाम ( दूसरी माता ) -शुकवारो बाई जांगड़े।

इनके गुरु ( रिश्ते में फूफा )  – स्व.महेत्तर दास बघेल जी।

usha barle padmshree

एक स्कूली कार्यक्रम से हुई इनकी शुरुवात

इनके जीवन की शुरुवात  एक  स्कूली  कार्यक्रम में हिस्सा लेकर अपनी गायन कला की प्रस्तुति की  और इनके पिता ने इनके कार्यक्रम को देखा। इस कार्यक्रम को देखकर इनके पिता अत्यंत ही क्रोधित हुए और उन्होंने गुस्से में आकर उषा बारले जी को एक कम गहरे वाली कुंए में उतार फेंका। पड़ोसियों तथा इनकी माता जी ने जब देखा  की इनके पिता जी ने इनको कुंए फेंक दिया है तब मोहल्ले वासियो ने इन्हे मिलकर कुंए से बाहर निकाला।

इसके बाद इनके फूफा जी ( इनके  गुरु जी   ) ने देखा की इनमे कुछ अलग ही बात थी उन्होंने बारले जी को यही से  सीखाना शुरू किया। और इन्होने अपने फूफा जी से पंडवानी तथा पंथी गीत यही से सीखा।

इनके पिता ने 2 साल की उम्र में उषा बारले जी का विवाह

2 सालकी उम्र में ही इनके पिता ने इनका विवाह कर दिया था। हुआ ये था की इनके पिता की दो पत्निया थी। इनके पिता की पहली पत्नी यानी इनकी बड़ी माता की कोई संतान नहीं थी इसलिए इनके पिता ने दो शादिया की। इनके पिता की दूसरी शादी 50 साल की उम्र में धनमत बाई मतलब इनकी असली माता से हुई तब जाके इन्होने सोच लिया और महज 2 साल की उम्र में ही उषा जी की विवाह 7 साल के अमरदास बारले जी से कर दिया।  इतनी कम उम्र से ये दोनों साथ साथ भौरा – गिल्ली तथा कई खेल खेलते साथ बढे है।  और आज भी दोनों एक साथ है।

पंडवानी तथा पंथी के क्षेत्र में उषा बारले जी की उपलब्धियां  –

पंडवानी गायन के लिए इनकी माता ने तो यंहा तक की अपनी 2 एकड़ की जमीन भी उस समय महज 7000 रुपयों में इनके गायन के वाद्य यंत्र जैसे तबला, चिकारा, पेटी ( हारमोनियम ) के लिए बेच दी थी। फिर क्या इन्होने अपने पति के साथ मिलकर पंथी तथा पंडवानी के क्षेत्र में इन्होने अपना डंका देश विदेश में बजाया।

इन्होने लन्दन,न्यूयॉर्क, जापान जैसे 12 से भी ज्यादा देशो में इन्होने पंडवानी तथा पंथी गीतो की  प्रस्तुतियां दे चुकी है।

गिरौदपुरी में ये 6 बार स्वर्ण पदक भी जीत चुकी है। 2006 में दिल्ली के गणतंत्र दिवस परेड में छत्तीसगढ़ के लिए  पंडवानी का प्रतिनिधित्व कर प्रथम स्थान भी प्राप्त कर चुकी है। तथा के पास ऐसे सैकड़ो पुरूस्कार से पुरुष्कृत की जा चुकी है।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top
बम्लेश्वरी माता डोंगरगढ़ नवरात्री में