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बम्लेश्वरी माता डोंगरगढ़ maa bamleshwari mandir नवरात्री में full story

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माँ बम्लेश्वरी मंदिर डोंगरगढ़

maa bamleshwari mandir

2200 साल पुराना है माता का मंदिर maa bamleshwari mandir

इस नवरात्री आप जा रहे है माता बम्लेश्वरी maa bamleshwari mandir डोंगरगढ़ मंदिर तो आपको क्या ये पता है की माता का मंदिर 2200 साल पहले हुआ है माता के मंदिर की स्थापना। ये उस समय की बाद है जब डोंगरगढ़ पहले कामाख्या नगरी हुआ करता था।

इस मंदिर से जुडी है संगीतज्ञ माधवनल और कामकंदला की कहानी

इस मंदिर के निर्माण की कहानी से पहले शुरू होती है संगीतज्ञ माधवानल और कामकंदला की कहानी ,

कामकंदला एक नर्तकी हुआ करती थी जो राजा के दरबार में अपनी नृत्य से सबका मन मोह लिया करती थी। हुआ ये था की कामकंदला रोज की तरह अभ्यास कर रही थी और इनकी पायल की घुंघरू की आवाज सुनकर माधवानल जो एक संगीत में उनकी अच्छी पकड़ थी उन्हें पता चला की जो तबला वादक है उसके हाथ का अंगूठा नहीं है। तथा कामकंदला के पायल की घुंघरू के आवाज संगीतज्ञ माधवनल तक आवाज पहुंची तो उनसे रहा नहीं गया और वो ये देखने के लिए राजदरबार की ओर बढे तो द्वारपालों ने उन्हें रास्ते में ही रोक लिया।

और इन सब की सुचना जब राजा को मिला तो उन्होंने उस तबला वादक को निकालकर माधवनल को उनके स्थान पर रख लिया है इस तरह से माधवानल और कामकंदला एक दूसरे से परिचित हुए अब चूँकि माधवानल संगीतज्ञ थे तो इन दोनों कलाकारी दूर दूर तक प्रसिद्ध हुआ और दोनों आपस में प्रेम करने लगे।

काफी दिन तक दोनों का प्रेम प्रसंग ऐसे ही चलता रहा धीरे धीरे ये बात जब राजा के पास पहुंची तो माधवानल को बंदी बनाने का त्वरित आदेश मिल आदेश की जानकारी पाकर जब सैनिक माधवनल को पकडे के लिए गए तो वो वहाँ से जान बचाकर भाग निकला और डोंगरगढ़ की पहाड़ी में छुप गया रात रात में पहाड़ी से निकलकर वो कामकंदला से मिलने आया करता था।

एक दिन राजा ने इन दोनों को बात करते पकड़ लिया तो माधवानल को मृत्यु की सजा सुनाई माधवानल कैसे भी करके वंहा से जान बचाकर भगा और उज्जैन चला गया और वंहा के राजा से मदद की गुहार लगाई चूँकि वंहा का राजा अत्यंत दयालु तो वो माधवानल की मदद के लिए तैयार हो गया। दोनों राजाओ के बिच युद्द हुआ और उज्जैन के राजा इस युद्द में विजयी हुए।

तो उन्होंने कामकंदला के प्रेम की परीक्षा लेने उनके पास पहुंचे और उन्होंने बताया की युद्ध में माधवानल मारा गया ये सुनते ही कामकंदला इस ऊँची पहाड़ी से कूदकर निचे स्थित तालाब में गिरी जिससे उसकी मौत हो गयी। इस बड़ी भूल की पश्चाताप के लिए इस ऊँची पहाड़ी पर माता बम्लेश्वरी के मंदिर का निर्माण कराया गया।

देश विदेश से आते है माता दर्शन के लिए

यहाँ प्रतिवर्ष दोनों नवरात्रि चैत्र,और कंवार महीने में माता के दर्शन के लिए छत्तीसगढ़ के कोने कोने से साथ ही साथ अन्य राज्यों से तो माता के श्रद्धालु आते ही है तथा यहाँ विदेश से भी लोग यहाँ दर्शन के साथ साथ ज्योत प्रज्ज्वलित करवाने के लिए डोंगरगढ़ आते है।

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