Maa Bamleshwari Mandir Dongarhgadh FULL STORY

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maa bamleshwari mandir

क्या माँ बम्लेश्वरी ( maa bamleshwari )की एक रहस्यमयि कहानी है ? तो इसका उत्तर हां है पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इसका उल्लेख हमें राजा विक्रमादित्य की आराध्य देवी के रूप में तथा यंहा उपस्थित राजसी पहाड़ो व् यंहा उपस्थित तालाबों की स्थिति से इस रहसयमयी कहानी की पुस्टि होती है। 

आइये जानते है माँ  बम्लेश्वरी ( maa bamleshwari )की रहस्मयी कहानी के बारे में –

1.माँ बम्लेश्वरी ( maa bamleshwari ) की रहस्यमयी कहानी –

माँ बम्लेश्वरी ( maa bamleshwari ) की इस रहस्यमयी की कहानी लगभग 2200 वर्ष पुराना है।  इस कहानी की शुरुवात होती है राजनृतकी कामकंदला से। 

कई सौ सालो पहले डोंगरगढ़ कामाख्या नगरी हुआ करती थी। वर्तमान में ये अभी डोंगरगढ़ के नाम से प्रसिद्ध है इसी कामाख्या नगरी में एक राजा हुआ करते थे जंहा  कामकंदला नामक  स्त्री राजनृतकी हुआ करती थी। कामकंदला इतनी रूपवती और नृत्य मे पारंगत थी की कई राज्यों से इनको नृत्य के लिए प्रस्ताव आते थे फिर भी कामकंदला इन सभी प्रस्ताव को ठुकरा देती थी। 

उसी राज्य में माधवनाल नामक संगीतज्ञ रहते थे जो संगीत कला में निपुण थे।  एक दिन जब राजनृतकी नृत्य की अभ्यास कर रही थी तो दूर बैठे माधवनाल को संगीत की ध्वनि दूर से भी स्पष्ट सुनाई पड़ रही थी ,अब इनको ये ध्वनि में नृतिका की अभ्यास को देखने की इच्छा हुई और ये चल पड़े राजमहल की प्रवेश द्वार पे।  पहरेदारो ने इनको अंदर जाने से मना कर दिया। 

फिर क्या था वह कुछ देर वही रहकर संगीत सुनने लगे।  कुछ देर बाद उन्हें पता चला की जो तबला वादक है उनका अंगूठा ही नहीं  है तथा जो राजनृतकी है उनके पैरो में घुंघरू ही नहीं है ये बाते पता चलते ही।  तेज स्वर में वंहा उपस्थित द्वारपालों को बोल पड़े।  

कि यंहा मैं व्यर्थ ही में इस संगीत को सुने ही जा रहा हूँ जिस संगीत में इतनी सारी कमियाँ है।  जिसे जानकर भी कोई दूर नहीं करना चाहता।  माधवनाल ये सब इतना ऊँचे स्वर में बोल रहे थे की द्वारपालों के लाख मना करने पर वह चुप नहीं हुए बात राजा के कानो तक पहुंची और ये सब उसने देखा। ये सब सुनकर राजा ने आदेश दिया और इस बात की पुस्टि के  लिए एक सभा बुलाई गयी। 

इस सभा में माधवनाल की कही गयी बाते सत्य निकली और उसी समय राजा ने माधवनाल को इस नृत्य – गायन में संगीतज्ञ के रूप में विशेष स्थान दिया गया। 

इस तरह से माधवनल नृतिका कामकंदला के साथ नृत्य गायन वादन किया करता था।  धीरे धीरे समय बीतता गया और माधवनाल को कामकंदला से प्रेम होने लगा।  इसी तरह से कामकंदला को भी माधवनाल प्रिय लगने लगा | 

एक बार हुआ कुछ यूँ कि राजदरबार में दोनों नृत्य गायन वादन कर रहे थे।  जिसे देख राजा अत्यधिक प्रसन्न हुए और उन्होने एक कीमती भेट स्वरुप एक हार दिया जिसे माधवनाल ने कामकंदला को दे दिया ये सब देख राजा क्रोधित हुए और क्रोध के मारे उन्होंने माधवनाल को राज्य से निष्कासित करने का दंड सुनाया। 

चूँकि माधवनाल को कामकंदला प्राणो से भी प्रिय थी वह उसे छोड़कर नहीं जाना चाहता था।  इसलिए वह कामाख्या नगरी ( डोंगरगढ़ ) की गुफाओ में चुप कर रहने लगा। 

इधर राजा के बेटे यानी राजकुमार को कामकंदला से प्रेम होने लगा पर कामकंदला को तो माधवनाल से प्रेम था इसलिए वह राजकुमार से प्यार का झूठा नाटक करती थी।  

एक बार जब माधवानाल कामकंदला से मिलने आया था उसी समय राजकुमार भी वंहा आ पहुंचे।  तब उन्हें कामकंदला तथा माधवनाल के प्रेम प्रसंग के बारे में पता चल गया राजकुमार ने तुरंत ही दोनों को बंदी बनाने का आदेश दिया परन्तु माधवनाल वंहा से किसी तरह से बच निकला और गुफाओ में छूप गया पर वंहा पर भी सैनिक आ गए तब उसे किसी तरह से उज्जैन जाना पड़ा। 

उस समय उज्जैन के राजा राजा विक्रमादित्य हुआ करते थे। राजा को जब माधवनाल ने अपनी कहानी सुनाई तो राजा विक्रमादित्य उनकी सहायता के लिए राजी हो गए। और उन्होंने कामाख्या नगरी में चढ़ाई कर दी तथा इस युद्व में राजा विक्रमादित्य विजयी हुए। 

राजा विक्रमादित्य ने इस जीत के पश्चात माधवनाल तथा कामकंदला की परीक्षा लेने की सोची।  राजा ने कामकंदला के समीप जाकर कहा की इस युद्ध के दौरान माधवनाल शहीद हो गए।  ये सुनते ही कामकंदला उसी पहाड़ के समीप बने तालाब में   कूद कर अपनी जान दे दी।  तथा इसी तरह माधवनल में भी आत्महत्या कर लिया। 

कामकंदला तथा माधवनाल की मृत्यु का जिम्मेदार खुद को मानकर राजा को पश्चाताप हुआ और उसने अपनी आराध्य देवी माँ बगलामुखी की आराधना करने लगा। उसकी यह साधना विफल गयी माता प्रसन्न नहीं हुयी  | यह सब करने के बाद राजा बहुत दुखी हुआ और उसने आत्महत्या करके जान देने की ठानी तभी उसी रात माता राजा विक्रमादित्य के स्वपन में आये और माता ने राजा से अपनी इच्छा मांगने को कहा राजन ने कहा उन दोनों को फिर से जीवित करने को कहा।

माता ने पुनः कोई दूजा इच्छा मांगने को कहा बहुत सोच विचार करने के पश्चात राजा ने कहा माता आप यहाँ विराजमान रहिये जो भी सच्चे मन से मन्नत लेकर आये आप उनकी इच्छाएं अवश्य ही पूरा करे और मुझे अब कोई दूजा वरदान नहीं चाहिए।  

इसके बाद वंहा माता के नाम से मंदिर बनवाया गया जो आज भी उस पहाड़ पर माता विराजमान है। 

2.माँ बम्लेश्वरी ( maa bamleshwari ) मंदिर कहाँ है ?

माँ बम्लेश्वरी  ( maa bamleshwari )मंदिर राजनांदगांव जिले के डोंगरगढ़ में स्थित है | माँ बम्लेश्वरी 1600 फ़ीट ऊँची पहाड़ पे विराजमान है | 

3.माँ बम्लेश्वरी ( maa bamleshwari )मंदिर डोंगरगढ़ कैसे पहुंचे

माँ बम्लेश्वरी डोंगरगढ़ मंदिर आपको ट्रैन से पहुंचे की सुविधा है | यंहा आप बस से पहुंचना चाहे तो इसके लिए बस की भी सुविधा | 

4.माँ बम्लेश्वरी ( maa bamleshwari ) नवरात्री के समय

 माँ बम्लेश्वरी मंदिर में हमेशा से भक्तो का तांता लगा रहता है | यंहा ,मांगी गयी मन्नत हमेशा ही माता पूरा करती है | लोग यंहा नवरात्री के समय लोग मनोकामना पूर्ति के लिए ज्योत जलवाते है | यंहा चैत्र तथा कंवार दोनों समय भीड़ लगा रहता है | 

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5.माँ बम्लेश्वरी ( maa bamleshwari )जाने का उत्तम समय

माँ बम्लेश्वरी ( maa bamleshwari ) मंदिर जाने का उत्तम समय तो नवरात्रि है | पर अगर आप भीड़ भाड़ में नहीं जाना चाहते तो बहुत अच्छी बात है बाद में आपको सभी चीजों का आनन्द लेने को मिलेगा तथा आप सभी चीजों का लुत्फ भी उठा सकते हो| मेरी माने तो आप नवरात्रि में जाए और मेला का लुत्फ भी उठाये |

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बम्लेश्वरी माता डोंगरगढ़ नवरात्री में